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स्तम्भ - ३९ *RSS के बाग़ से निकले फूलो मे सुगंध कुछ ज्यादा होती है ...* कभी कभी सालो तक कुछ नहीं होता और कभी कभी मिनटो मे इतिहास बदल जाता है। 2014 मे महाराष्ट्र की राजनीतिक डिक्शनरी मे बीजेपी मतलब गोपीनाथ मुंडे, शिवसेना मतलब ठाकरे वंश और NCP मतलब शरद पवार होता था। उस समय शायद ही किसी ने इन तीन पार्टियों के लिये इस तस्वीर की कल्पना की होंगी। 2014 मे मोदीजी की आंधी मे लोकसभा के साथ साथ विधानसभाये भी हिल गयी। महाराष्ट्र मे 46 सीटों वाली बीजेपी 122 पर आ खड़ी हुई, शिवसेना का बाला साहेब के बिना ये पहला चुनाव था। उद्धव को पूरा सीनियर ठाकरे वाला ट्रीटमेंट मिल रहा था इसलिए उसने बीजेपी को समर्थन दे दिया। बीजेपी ने सभी को चौकाते हुए देवेंद्र फडणवीस को आगे कर दिया। RSS के बाग़ से निकले फूलो मे सुगंध कुछ ज्यादा होती है क्योंकि सड़के नापा हुआ व्यक्ति होता है। यही कारण था कि देवेंद्र फडणवीस का काम 2019 मे उन्हें फिर जीता गया इस बार सीटें 105 थी। दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे जो 1997 से ही खुद मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहा था। उसकी महत्वकांक्षा तीव्र हो गयी, इसलिए उसने NCP और कांग्रेस से हाथ मिलाकर बाल ठाकरे क...
स्तम्भ - ३६/२०२४ मुस्लिम वोटों पर भरोसा कर  हिंदुओं को जूते की नोक पर  रखने का नतीजा मिला MVA को - उद्धव को समझना चाहिए कि  “एक हैं सेफ हैं” का क्या मतलब है - MVA आज महाविकास अघाड़ी की जगह “महा विनाश अघाड़ी” बन गया - इन लोगों ने सोचा था जैसे कर्नाटक और तेलंगाना में 13 - 13 % मुसलमानों की आबादी से एकतरफा वोट लेकर दोनों राज्यों में सरकार बनाई थी, वैसे ही महाराष्ट्र के करीब 12% मुसलमानों के दम पर सरकार बना लेंगे और मुस्लिम वोट का भरोसा दिया AIMPLB के मौलाना सज्जाद नोमानी ने जिसके  सामने कांग्रेस, शरद पवार और उद्धव लोट गए कि उसकी हर मांग मान ली, यहां तक RSS को बैन करने का भी वादा कर दिया -  आज की जीत के बाद साबित हुआ कि मुस्लिमों के एकजुट होकर MVA को वोट देना भी किसी काम नहीं आया और इसलिए अब मुस्लिमों को मिलने वाली सुविधाएं बंद कर देनी चाहिए क्योंकि जब कांग्रेस और उसके सहयोगी केवल मुस्लिमों के लिए योजनाएं लाते हैं तो फिर भाजपा को भी उन्हें योजनाओं से बाहर रखने का अधिकार है क्योंकि जब वोट ही नहीं देते तो किसी योजना का लाभ क्यों मिले - नोमानी से MVA ने वादा किया किया तो...
स्तम्भ : ३५/२०२४ अब यह दिन की रोशनी की तरह साफ है कि कांग्रेस पूरी तरह भारतीय राजनीति का मुस्लिम प्रकोष्ठ बन चुकी है। उसे अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि देश के वास्तविक अल्पसंख्यकों से उसे कोई लेना-देना नहीं है। न वह यह सच स्वीकार करने को तैयार हो सकती कि किसी भी समुदाय की थोक बीस करोड़ आबादी कभी अल्पसंख्यक नहीं हो सकती। अल्पसंख्यकों के नाम पर कांग्रेस को शुरू से ही मुसलमानों से मतलब रहा है। मुसलमानों से भी नहीं, केवल उनके वोट से, जिसे एक सुरक्षित बैंक की तरह बाँधकर इस्तेमाल किया गया। कांग्रेस के लिए आरक्षित और सुरक्षित बैंक के रूप में मुसलमान सबसे चतुर, चौकन्ने और सावधान वोट रहे हैं, जिन्होंने क्षेत्रीय सेक्युलर दलों के उभार पर आने तक कांग्रेस की मजेदार सवारी की और कांग्रेस के कमजोर पड़ते ही उससे टूटे हुए टुकड़ों पर लटककर झूमते रहे। जैसे महाराष्ट्र में एनसीपी और बंगाल में टीएमसी। यूपी में सपा-बसपा, बिहार में आरजेडी। लेकिन जहाँ औवेसी टाइप के अवतार आए तो उन्होंने नई दुकानों के एक पार्षद या विधायक को जिताने में जरा भी देर नहीं की। सेक्युलर पार्टियों के सहारे वे तभी तक रहते ...
स्तम्भ - 29/2024 इनके पास ढंग के वकील तक नहीं हैं कोर्ट में तर्क करने के लिए! सिंघवी ने कह दिया कि भेदभाव है, जज ने मान लिया भेदभाव है, अंतरिम आदेश आ गया।   क्या दुकान के बोर्ड पर 'शुद्ध शाकाहारी ढाबा' लिखने से वो सुनिश्चित हो जाता है? क्या हिंदुओं के अपने धार्मिक भोजन के अधिकार नहीं हैं? क्या यह विषय केवल भेदभाव और शाकाहार-मांसाहार का ही था?  थूकने और मूतने की वीडियो देख कर कोई हिंदू कैसे ऐसे दुकानों से सामान ले ले जिनकी आस्था या कहती है कि काफिरों के भोजन और धर्म को जितना संभव हो दूषित करो?  इन जजों को दिखाओ और पूछो कि इतने वीडियो में हम 'व्यक्ति' को देखें या 'सामूहिक सोच' को? या मामला व्यक्तिगत है ही नहीं। इन्हें इनकी किताबों की पंक्तियाँ दिखाईं जाए और पूछा जाए कि आम मुसलमान इन्हें मानता है या नहीं।  अगर जवाब 'ना' हो तो ऐसी घृणास्पद किताबों को प्रतिबंधित करने के आदेश दिए जाएँ। इतने वर्षों में हमारे पास ढंग के 10 अधिवक्ता नहीं है जो अपनी रील कटवाने और ट्विटर पर एक ही रील के पोस्ट हर दिन करने में व्यस्त ना हों। जय जय भारत ... 🙏
स्तम्भ -  १७/२०२४ दो नरेंद्रो की कन्याकुमारी यात्रा .. PM मोदी का मौन व्रत रोकवाने अभिषेक मनु सिंघवी पहुंचे चुनाव आयोग के द्वार! अभी कितना और करेंगे पापाचार? राम मंदिर निर्माण में जितना ज्यादा अड़चन लगा सकते थे, लगाए। राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए निमंत्रण मिलने के बाद भी नहीं गए। जो गए, उन्हे पार्टी से निकाल दिया। अब इन्हें पूजा पाठ, योग, ध्यान से भी समस्या है। यह मोदी का व्यक्तिगत मामला है। कोंग्रेस को इसमें भी समस्या? इन्हें लग रहा कि ये आचार संहिता का उल्लंघन है! इससे मोदी को अपरोक्ष रूप से मीडिया का प्रसारण मिल जायेगा! बहरहाल......  दो नरेन्द्रों की कन्याकुमारी यात्रा: एक ऐतिहासिक पुनरुक्ति 2019 में अंतिम मतदान की पूर्व संध्या को प्रधानसेवक बाबा केदार के दरबार में उपस्थित हुए थे, यहीं उन्होंने ध्यान लगाया था। बहुत दिनों से सोच रहा था कि इस बार वे किस धाम में ध्यान धरेंगे। पर आज जब पता चला कि वे उसी दिव्य शिला पर जाएंगे जहाँ देवी कन्याकुमारी के चरणचिह्न अंकित हैं और जिस शिला ने सोए हुए हिन्दूराष्ट्र को हिला कर रख दिया था, और जहाँ पर स्वामी विवेकानन्द ने ध्यान कि...
स्तम्भ -  १७/२०२४ PM  श्री मोदी जी का मौन व्रत रोकवाने अभिषेक मनु सिंघवी पहुंचे चुनाव आयोग के द्वार! अभी कितना और करेंगे पापाचार? राम मंदिर निर्माण में जितना ज्यादा अड़चन लगा सकते थे, लगाए। राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए निमंत्रण मिलने के बाद भी नहीं गए। जो गए, उन्हे पार्टी से निकाल दिया। अब इन्हें पूजा पाठ, योग, ध्यान से भी समस्या है। यह मोदी का व्यक्तिगत मामला है। कोंग्रेस को इसमें भी समस्या? इन्हें लग रहा कि ये आचार संहिता का उल्लंघन है! इससे मोदी को अपरोक्ष रूप से मीडिया का प्रसारण मिल जायेगा! बहरहाल......  दो नरेन्द्रों की कन्याकुमारी यात्रा: एक ऐतिहासिक पुनरुक्ति 2019 में अंतिम मतदान की पूर्व संध्या को प्रधानसेवक बाबा केदार के दरबार में उपस्थित हुए थे, यहीं उन्होंने ध्यान लगाया था। बहुत दिनों से सोच रहा था कि इस बार वे किस धाम में ध्यान धरेंगे। पर आज जब पता चला कि वे उसी दिव्य शिला पर जाएंगे जहाँ देवी कन्याकुमारी के चरणचिह्न अंकित हैं और जिस शिला ने सोए हुए हिन्दूराष्ट्र को हिला कर रख दिया था, और जहाँ पर स्वामी विवेकानन्द ने ध्यान किया है, तो उस स्थान के भ...