स्तम्भ : ३५/२०२४

अब यह दिन की रोशनी की तरह साफ है कि कांग्रेस पूरी तरह भारतीय राजनीति का मुस्लिम प्रकोष्ठ बन चुकी है। उसे अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि देश के वास्तविक अल्पसंख्यकों से उसे कोई लेना-देना नहीं है। न वह यह सच स्वीकार करने को तैयार हो सकती कि किसी भी समुदाय की थोक बीस करोड़ आबादी कभी अल्पसंख्यक नहीं हो सकती। अल्पसंख्यकों के नाम पर कांग्रेस को शुरू से ही मुसलमानों से मतलब रहा है। मुसलमानों से भी नहीं, केवल उनके वोट से, जिसे एक सुरक्षित बैंक की तरह बाँधकर इस्तेमाल किया गया।

कांग्रेस के लिए आरक्षित और सुरक्षित बैंक के रूप में मुसलमान सबसे चतुर, चौकन्ने और सावधान वोट रहे हैं, जिन्होंने क्षेत्रीय सेक्युलर दलों के उभार पर आने तक कांग्रेस की मजेदार सवारी की और कांग्रेस के कमजोर पड़ते ही उससे टूटे हुए टुकड़ों पर लटककर झूमते रहे। जैसे महाराष्ट्र में एनसीपी और बंगाल में टीएमसी। यूपी में सपा-बसपा, बिहार में आरजेडी। लेकिन जहाँ औवेसी टाइप के अवतार आए तो उन्होंने नई दुकानों के एक पार्षद या विधायक को जिताने में जरा भी देर नहीं की। सेक्युलर पार्टियों के सहारे वे तभी तक रहते हैं जब तक कोई ठोस मुस्लिम विकल्प नहीं आ जाता। उन्हें हर हाल में केवल इस्लाम चाहिए। जब तक नहीं है तब तक सेक्युलर दल अधिक अनुकूल हैं।

मुस्लिम वोट के एकतरफा गिरने में एक बात बिल्कुल स्पष्ट रही है कि वह बीजेपी को अपना दुश्मन नंबर एक मानते हैं। भले ही सबके साथ और सबके विकास में सब की सब सरकारी स्कीमों का फायदा लेने में वे अव्वल रहे हों मगर मोदी और योगी से बुरा अल्लाह की कायनात में कोई नहीं है। जम्मू-कश्मीर के नतीजों में कट्‌टरपंथियों की हार और मुस्लिम बहुल इक्का-दुक्का सीटों पर बीजेपी की जीत हो सकता है कि मुस्लिम समाज के भीतर किसी बदलती हुई सोच का संकेत हो, लेकिन ऐसे किसी भी नतीजे पर आने की जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए।

कांग्रेस वैश्विक समस्या बन चुकी मुस्लिम कट्‌टरता, आतंक और अपराध की संगठित घटनाओं, हिंदू तीज-त्योहारों के समय अनावश्यक सामाजिक टकराव और विद्वेष के मसलों पर मौन है। हिमाचल प्रदेश के शहरों में अवैध रूप से मस्जिदों की बहुमंजिला इमारतें, उत्तराखंड के पहाड़ी जंगलों में हजारों अवैध मजारें-दरगाहें, धर्मांतरण में खुलकर लगे मुल्ले-मौलवियों, तेजी से फैलते मदरसों के गैरकानूनी नेटवर्क, बांग्लादेशी और रोंहिग्या घुसपैठिए, एएमयू और जामिया मिलिया में आरक्षण, लव जिहाद, लैंड जिहाद चारों ओर खदबदाते विषय महत्वपूर्ण होते हुए भी कांग्रेस के किसी काम के नहीं हैं। वह ऐसा कुछ कहने-करने में पूरी तरह निष्क्रिय नहीं बल्कि नपुसंक हो चुकी है, जिससे मुस्लिम नाराज हों। जबकि क्षेत्रीय दलों के प्रभावी राज्यों में मुस्लिम उसे भी एक अरसे से घास नहीं डाल रहे। कांग्रेस का गढ़ रहे यूपी में मुस्लिम कब से दुलत्ती दिए हुए हैं?

ताज्जुब है कि राष्ट्रीय पार्टी होने का दावा करने वाली और अब छिटपुट टापुओं की तरह कुछ राज्यों तक सिमट चुकी देश की सबसे पुरानी और कई बार टूट-फूट चुकी, जवाहरलाल नेहरू की इस पारिवारिक पार्टी के लिए वैश्विक परिदृश्य में मुस्लिमों से जुड़े मसले भी उदासीन बनाए रखते हैं। उसे गाजा पट्‌टी दिखाई देती है लेकिन इजरायल के अस्तित्व के संकट से उसे कोई सरोकार नहीं है। अफगानिस्तान में तालिबान के उभार में मानवाधिकारों और महिलाओं के दमन, पाकिस्तान में ईशनिंदा के नाम पर सरेआम मौत की सजाएँ, बांग्लादेश में हिंदुओं उत्पीड़न, मंदिरों पर आए दिन के हमले उसके लिए संवेदना के एक साधारण बयान लायक भी नहीं लगते। कांग्रेस मुस्लिम वोट के अंडों पर पँख फैलाकर बैठी एक ऐसी मूर्ख चिड़िया है, जिसे लगता है कि यह काम मुसलमानों ने उसके लिए ही रख छोड़ा है, जबकि अंडों में से बच्चे कब के निकलकर यहाँ-वहाँ की उड़ानें भर रहे हैं।

वक्फ कानून कांग्र्रेस की पोल खोलने वाला सबसे चर्चित और चिंताजनक मसला है, जिसका क्रियाकर्म एनडीए के इन दस सालों में हो जाना चाहिए था। यूपीए के दस सालों के दौरान कांग्रेस बड़ी निर्लज्जता से यह कहकर बहुसंख्यकों को चिढ़ाती रही कि देश के संसाधनों पर पहला हक तो मुसलमानों का है। बाटला हाऊस मुठभेड़ में मारे गए मुस्लिमों की खबर सुनकर सोनिया रो पड़ी थीं। डूबती कांग्रेस के दिनों में यूपीए का देश के लिए सबसे बड़ा आघात वक्फ कानून है, जिसमें बिना देखे उन्हें भस्मासुर जैसे वरदान दे दिए गए। जिस जमीन या इमारत पर हाथ रख दो, वह आपकी। यह देश के बहुसंख्यक हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों, सिखों और पारसियों की पीठ में भोंका गया छुरा था क्योंकि कांग्रेस की नजर में देश के संसाधनों पर इनके हक ही नहीं थे। जिसका हक था, कांग्रेस ने पूरी बेशर्मी से उसे दे दिया।

अब इन बातों का कोई अर्थ नहीं रह गया है कि कांग्रेस ने मुस्लिमों के आर्थिक और शैक्षणिक विकास में क्या योगदान किया? उन्हें कुरीतियों से मुक्त करने, मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों और मुस्लिम बच्चों की आधुनिक शिक्षा की उसे कितनी फिक्र रही? असल बात यह है कि कांग्रेस मुसलमानों के नाम पर केवल अशराफ मुसलमानों के हाथों का खिलौना बनी रही। अशराफ मुसलमान मतलब मुसलमानों के ताकतवर ऊँची जातियों के सवर्ण, जिनके दिमागों में यह बात काई जैसी जमी है कि वे आठ सौ साल राज कर रहे थे। भारतीय मूल की हिंदू जातियों से धर्मांतरित बहुसंख्यक मुस्लिम साठ साल तक उस बाड़े में अनुशासित वोटों की आज्ञाकारी भेड़ें बनी रहीं। 

कांग्रेस के इस मॉडल ने मुसलमानों को लगातार ठगा। फायदे में केवल उच्च वर्गीय मुसलमानों के चंद परिवार रहे। क्षेत्रीय सेक्युलर पार्टियों ने भी अपनी दुकानों के शोकेस में ऐसे ही चेहरे सजाए। असल गरीब और पिछड़े मुसलमानों के हालात दयनीय होते गए मगर कांग्रेस के प्रारूप में दया नाम का कोई कॉलम नहीं था, जिसमें इनके वास्तविक वर्गीय विवरण भरे जाते। सच्चर कमेटी की सच्चाई कांग्रेस का अपने ही हाथों अपने गालों पर मारा गया जोरदार तमाचा है।

वोटों के रूप में मुसलमानों की यह संगठित शक्ति ही थी, जिसने आजादी के बाद भारतीय राजनीति में उन्हें एक प्रभावी भूमिका में बनाए रखा। नैसर्गिक और विधि सम्मत न्याय की दृष्टि से देखा जाए तो मजहब के नाम पर हुए देश के दुखद बटवारे के साथ ही हिसाब चुकता हो चुका था। लेकिन धरती पर ऐसा बटवारा शायद ही कहीं हुआ हो कि धरती बांटने के बाद भी हिसाब बाकी रह गए, जिसका अंतहीन चुकारा सत्तर साल बाद तक जारी रहे और किसी आसमानी इंसाफ के मुताबिक चक्रवृद्धि ब्याज की दर से बढ़ता हुआ वक्फ की भारी भरकम खेप हड़पने के लिए अपना पेट बढ़ाता रहे। यह कांग्रेस के कारण ही संभव हुआ कि भारतीयों ने ये दिन देखे। यह हिंदू समाज के कानों में बजे आकाशभेदी घंटों की तीव्र ध्वनि है, जिससे मुर्दे भी जाग जाएँ।

यह बात कुछ हद तक हिंदुओं की अक्ल में आ गई है कि उनका बटना, उनके कटने की शुरुआत है और कांग्रेस की पूरी कोशिश हिंदू समाज को बांटने की यानी आखिरकार काटने की है। देश को बाँटकर हिंदुओं को कटने के लिए वह पीछे छोड़ आई थी। अब बचे-खुचे भारत में उनका तीया-पाँचा करना था। राहुल गाँधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस विचार शून्य अवसरवादियों का एक अराजक झुंड बन चुकी है, जिसका रिमोट विदेशी ताकतों के हाथों में है। उनकी जेबें भी बाहर से भर रही हैं और बुद्धि भी उधार की चल रही है। दुष्प्रचार और झूठ के सहारे केवल बीजेपी और बीजेपी ही नहीं, केवल नरेंद्र मोदी को सत्ता से उखाड़ने का एक सूत्रीय एजेंडा कांग्रेस के पास रह गया है।

 हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनावों ने लोकसभा चुनावों के समय बनी नकली हवा निकाल दी है। बीजेपी की लीडरशिप के लिए यह नाजुक समय देश के लिए महत्वपूर्ण संवेदनशील मसलों पर बंगाल से लेकर बांग्लादेश तक खुलकर खेलने का है। देश उसके साथ है। कांग्रेस भारतीय राजनीति का मुस्लिम प्रकोष्ठ बनकर खुश है। उसे खुश रहने दीजिए।
जय जय भारत ... 🙏

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