स्तम्भ - १७/२०२४ दो नरेंद्रो की कन्याकुमारी यात्रा .. PM मोदी का मौन व्रत रोकवाने अभिषेक मनु सिंघवी पहुंचे चुनाव आयोग के द्वार! अभी कितना और करेंगे पापाचार? राम मंदिर निर्माण में जितना ज्यादा अड़चन लगा सकते थे, लगाए। राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए निमंत्रण मिलने के बाद भी नहीं गए। जो गए, उन्हे पार्टी से निकाल दिया। अब इन्हें पूजा पाठ, योग, ध्यान से भी समस्या है। यह मोदी का व्यक्तिगत मामला है। कोंग्रेस को इसमें भी समस्या? इन्हें लग रहा कि ये आचार संहिता का उल्लंघन है! इससे मोदी को अपरोक्ष रूप से मीडिया का प्रसारण मिल जायेगा! बहरहाल...... दो नरेन्द्रों की कन्याकुमारी यात्रा: एक ऐतिहासिक पुनरुक्ति 2019 में अंतिम मतदान की पूर्व संध्या को प्रधानसेवक बाबा केदार के दरबार में उपस्थित हुए थे, यहीं उन्होंने ध्यान लगाया था। बहुत दिनों से सोच रहा था कि इस बार वे किस धाम में ध्यान धरेंगे। पर आज जब पता चला कि वे उसी दिव्य शिला पर जाएंगे जहाँ देवी कन्याकुमारी के चरणचिह्न अंकित हैं और जिस शिला ने सोए हुए हिन्दूराष्ट्र को हिला कर रख दिया था, और जहाँ पर स्वामी विवेकानन्द ने ध्यान कि...
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स्तम्भ - ३९ *RSS के बाग़ से निकले फूलो मे सुगंध कुछ ज्यादा होती है ...* कभी कभी सालो तक कुछ नहीं होता और कभी कभी मिनटो मे इतिहास बदल जाता है। 2014 मे महाराष्ट्र की राजनीतिक डिक्शनरी मे बीजेपी मतलब गोपीनाथ मुंडे, शिवसेना मतलब ठाकरे वंश और NCP मतलब शरद पवार होता था। उस समय शायद ही किसी ने इन तीन पार्टियों के लिये इस तस्वीर की कल्पना की होंगी। 2014 मे मोदीजी की आंधी मे लोकसभा के साथ साथ विधानसभाये भी हिल गयी। महाराष्ट्र मे 46 सीटों वाली बीजेपी 122 पर आ खड़ी हुई, शिवसेना का बाला साहेब के बिना ये पहला चुनाव था। उद्धव को पूरा सीनियर ठाकरे वाला ट्रीटमेंट मिल रहा था इसलिए उसने बीजेपी को समर्थन दे दिया। बीजेपी ने सभी को चौकाते हुए देवेंद्र फडणवीस को आगे कर दिया। RSS के बाग़ से निकले फूलो मे सुगंध कुछ ज्यादा होती है क्योंकि सड़के नापा हुआ व्यक्ति होता है। यही कारण था कि देवेंद्र फडणवीस का काम 2019 मे उन्हें फिर जीता गया इस बार सीटें 105 थी। दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे जो 1997 से ही खुद मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहा था। उसकी महत्वकांक्षा तीव्र हो गयी, इसलिए उसने NCP और कांग्रेस से हाथ मिलाकर बाल ठाकरे क...
स्तम्भ - 29/2024 इनके पास ढंग के वकील तक नहीं हैं कोर्ट में तर्क करने के लिए! सिंघवी ने कह दिया कि भेदभाव है, जज ने मान लिया भेदभाव है, अंतरिम आदेश आ गया। क्या दुकान के बोर्ड पर 'शुद्ध शाकाहारी ढाबा' लिखने से वो सुनिश्चित हो जाता है? क्या हिंदुओं के अपने धार्मिक भोजन के अधिकार नहीं हैं? क्या यह विषय केवल भेदभाव और शाकाहार-मांसाहार का ही था? थूकने और मूतने की वीडियो देख कर कोई हिंदू कैसे ऐसे दुकानों से सामान ले ले जिनकी आस्था या कहती है कि काफिरों के भोजन और धर्म को जितना संभव हो दूषित करो? इन जजों को दिखाओ और पूछो कि इतने वीडियो में हम 'व्यक्ति' को देखें या 'सामूहिक सोच' को? या मामला व्यक्तिगत है ही नहीं। इन्हें इनकी किताबों की पंक्तियाँ दिखाईं जाए और पूछा जाए कि आम मुसलमान इन्हें मानता है या नहीं। अगर जवाब 'ना' हो तो ऐसी घृणास्पद किताबों को प्रतिबंधित करने के आदेश दिए जाएँ। इतने वर्षों में हमारे पास ढंग के 10 अधिवक्ता नहीं है जो अपनी रील कटवाने और ट्विटर पर एक ही रील के पोस्ट हर दिन करने में व्यस्त ना हों। जय जय भारत ... 🙏
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