स्तम्भ - १६/२०२५ *ऑपरेशन सिंदूर -* भारत में अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला 26/11 था जब पाकिस्तान से आए आतंकियों ने भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई की धरती पर मौत, दहशत का खूनी खेल खेला था। इस हमले सैकड़ों भारतीय और विदेशी नागरिक मारे गए थे, तब केंद्र और राज्य दोनों ही जगह कांग्रेस की सरकार थी। पूरा देश और सेना आक्रोश में थी, सेना इस हमले का बदला लेना चाहती थी लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सेना को ऐसा कोई आदेश नहीं दिया। वैसे भी मनमोहन सिंह एक कठपुतली प्रधानमंत्री थे जिन्हें अपनी मैडम से जो आदेश प्राप्त होता था वो केवल उतना ही करते थे क्योंकि वो देश के प्रधानमंत्री कम मैडम के सेवादार ज़्यादा थे। कांग्रेस बस कड़ी निंदा और डोज़ियर पे डोज़ियर भेजने का खेल खेलती रही लेकिन पाकिस्तान पर हमला तो दूर एक गोली तक नहीं चलाई उल्टे तब कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने एक पाकिस्तानी पत्रकार के साथ मिलकर इस हमले को आरएसएस का षड्यंत्र बताने में देरी नहीं की। कांग्रेस ने सुशील शिंदे और पी चिदंबरम के माध्यम से देश की संसद से पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद की निंदा करने की बजाय इसे भगवा आतंकवाद का र...
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स्तम्भ - ३९ *RSS के बाग़ से निकले फूलो मे सुगंध कुछ ज्यादा होती है ...* कभी कभी सालो तक कुछ नहीं होता और कभी कभी मिनटो मे इतिहास बदल जाता है। 2014 मे महाराष्ट्र की राजनीतिक डिक्शनरी मे बीजेपी मतलब गोपीनाथ मुंडे, शिवसेना मतलब ठाकरे वंश और NCP मतलब शरद पवार होता था। उस समय शायद ही किसी ने इन तीन पार्टियों के लिये इस तस्वीर की कल्पना की होंगी। 2014 मे मोदीजी की आंधी मे लोकसभा के साथ साथ विधानसभाये भी हिल गयी। महाराष्ट्र मे 46 सीटों वाली बीजेपी 122 पर आ खड़ी हुई, शिवसेना का बाला साहेब के बिना ये पहला चुनाव था। उद्धव को पूरा सीनियर ठाकरे वाला ट्रीटमेंट मिल रहा था इसलिए उसने बीजेपी को समर्थन दे दिया। बीजेपी ने सभी को चौकाते हुए देवेंद्र फडणवीस को आगे कर दिया। RSS के बाग़ से निकले फूलो मे सुगंध कुछ ज्यादा होती है क्योंकि सड़के नापा हुआ व्यक्ति होता है। यही कारण था कि देवेंद्र फडणवीस का काम 2019 मे उन्हें फिर जीता गया इस बार सीटें 105 थी। दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे जो 1997 से ही खुद मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहा था। उसकी महत्वकांक्षा तीव्र हो गयी, इसलिए उसने NCP और कांग्रेस से हाथ मिलाकर बाल ठाकरे क...
स्तंभ - 191/2023 संघ की रीति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मात्र केवल एक विचार नहीं, केवल एक संस्था नहीं, वह जीवन जीने की एक पद्धति है। जैसे व्यक्तिगत जीवन, वैसे ही सामाजिक जीवन भी। यह जीवन पद्धति अर्थात् संघ की रीति । जैसे किसी परिवार की रीति बनती है, वैसी ही संघ की बनी है। वह रीति पुस्तकें लिखकर या अनेक भाषण देकर नहीं बनी है। यह उदाहरणों से बनी है। इस रीति के कुछ बिन्दु- १. संघ में हम सब मित्र रहते हैं यानी बराबरी के रहते हैं। संघ में अधिकारी भी रहते हैं, किन्तु वह व्यवस्था का एक भाग है, केवल योग्यता का नहीं। अधिकारी में योग्यता रहना आवश्यक है। लेकिन क्या एक ही में योग्यता रहती है ? संघ ऐसा नहीं मानता। इसलिए सब एक दूसरे के मित्र और सहयोगी हैं। संघ में उच्च-नीच भाव नहीं है। २. सब बराबरी के होने से संघ में स्पर्धा को स्थान नहीं है।स्पर्धा नहीं, तो ईर्ष्या और मत्सर भी नहीं। सबके सम्बन्ध स्नेह भावना के रहते हैं। उसी तरह स्नेह और प्रेम का परस्पर व्यवहार रहता है। ३. आज्ञापालन व अनुशासन यह संघ की विशेष रीति है; लेकिन इसलिए दण्डशक्ति की व्यवस्था नहीं है। संघ शाखा के कार्यक्रमों द्वारा निर्माण होने...
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