स्तम्भ - २०१
21 से 29 दिसम्बर भारतीय इतिहास में ही नही सम्पूर्ण विश्व के इतिहास में बहुत बड़ी शहादत के दिन है ...
परन्तु अफसोस इस देश के अत्यंत बुद्धिजीवी लोग #ईद, #बकरीद, #मोहर्रम की तारीखे चाँद निकलने पर अवकाश घोषित करने का इन्तजार करता रहता है #क्रिसमस_पर्व पर #मैरी_क्रिसमस की तैयारियों में पूरे बुद्धिजीवी लोग हफ्तों #सांताक्लोज बनते फिरते है । हम अपनी गुलामी को जो बरसों बरस मुगल और अंग्रेजी हुकुमत में जकड़े रहे और जिस #गुरुगोबिंदसिंह जी ने अपने पिता #गुरुतेगबहादुर जी चारो बेटे साहिबजादा #अजितसिंह #जुझारसिंह #जोरावरसिंह #फ़तेहसिंह जी को देश धर्म की रक्षा की खातिर न्योछावर कर दिया उन्हें याद करने का हमारे पास बिलकुल भी समय नही ..
20 दिसंबर की वो रात #गुरुगोबिंदसिंह जी ने अपने परिवार और 400 अन्य सिखों के साथ आनंदपुर साहिब का किला छोड़ दिया और निकल पड़े…उस रात भयंकर सर्दी थी और बारिश हो रही थी…सेना 25 किलोमीटर दूर सरसा नदी के किनारे पहुंची ही थी कि मुग़लों ने रात के अंधेरे में ही आक्रमण कर दिया. बारिश के कारण नदी में उफान था. कई सिख शहीद हो गए. कुछ नदी में ही बह गए।
इस अफरातफरी में परिवार बिछुड़ गया. #मातागूजरी और दोनों छोटे #साहिबजादे गुरु जी से अलग हो गए. दोनो बड़े #साहिबजादे गुरु जी के साथ ही थे ।
उस रात गुरु जी ने एक खुले मैदान में शिविर लगाया. अब उनके साथ दोनो बड़े साहिबजादे और 40 सिख योद्धा थे.
शाम तक आपने चौधरी रूप चंद और जगत सिंह की कच्ची गढ़ी में मोर्चा सम्हाल लिया.
अगले दिन जो युद्ध हुआ उसे इतिहास में #2ndBattleOfChamkaurSahib के नाम से जाना जाता है.
22 दिसम्बर गुरु गोबिंद सिंह जी 40 सिक्ख फौजों के साथ चमकौर की गड़ी एक कच्चे किले में 10 लाख मुगल सैनिको से मुकाबला करते है एक एक सिक्ख 10 लाख मुगलिया फौजों पर भारी पड़ता है गुरु गोबिंद सिंह जी के बड़े बेटे जिनकी उम्र मात्र #17वर्ष की है साहेबजादा #अजितसिंह ने मुगल फौजों में भारी तबाही की सैकड़ो मुगलों को मौत के घाट उतारा लेकिन 10 लाख मुगलिया फौजों के सामने साहेबजादा #अजितसिंह शहीदी को प्राप्त करते है
छोटे साहेबजादे जिनकी उम्र मात्र #14वर्ष की है बड़े भाई की सहादत को देखते हुए पिता #गुरुगोबिंदसिंह जी से युद्धके मैदान में जाने की अनुमति मांगी एक पिता ने अपने हाथो से पुत्र को सजाकर युद्ध के मैदान में भेजा लाखो मुगलों पर भारी साहेबजादा #जुझारसिंह ने युद्ध के मैदान में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए और लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए ... अपने दोनों लाल सहादत पर पिता गुरु गोबिंद सिंह जी के यह वाक्य चरितार्थ हुए...
मेरा मुझमे कुछ नही जो कुछ है सो तेरा
तेरा तुझको सौप के क्या लागे है मेरा
गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों छोटे बेटे साहेबजादा #जोरावरसिंह साहेबजादा #फ़तेहसिंह जिनकी उम्र #5वर्ष और #7वर्ष की थी अपनी दादी माता गुजरी जी के साथ युद्ध के दौरान पिता गुरु गोबिंद सिंह जी से बिछड़ जाते है
रसोइया गंगू की नमक हरामी की वजह से इनाम के लालच में सरहंद के नवाब वजीर खान के पास बंदी बना लिए जाते है दोनों छोटे छोटे मासूम बच्चो को इस्लाम कबूल करवाने तरह तरह की तकलीफे दी जाती है माता गुजरी जी और छोटे छोटे माता जी के पोतो को किले के #ठंडेबुर्ज में कैद कर रखा जाता है दिसम्बर का महिना खून जमा देने वाली ठंड उस पर किले का वह ठंडा बुर्ज जहा सामान्य दिनों में कपकपा देने वाली ठंड पडती है दादी अपने पोतो को अपनी #ममता की छाव में सुलाती है 27 दिसम्बर का वह दिन वजीर खान के दरबार में दोनों छोटे साहिबजादों को हाजिर करने का फरमान जारी होता है दादी अपने पोतो को सजा कर माथे पर #कलंगी लगाकर भेजती है
कचहरी में घुसते ही नवाब के समक्ष शीश झुकाना है। जो सिपाही साथ जा रहे थे वे पहले सर झुका कर खिड़की के द्वारा अन्दर दाखिल हुए। उनके पीछे #साहबज़ादे थे। उन्होंने खिड़की में पहले पैर आगे किये और फिर सिर निकाला। थानेदार ने बच्चों को समझाया कि वे नवाब के दरबार में झुककर सलाम करें।किन्तु बच्चों ने इसके विपरीत उत्तर दिया और कहा: #यह_सिर_हमने_अपने_पिता_गुरू_गोबिन्द_सिंघ के हवाले किया हुआ है, इसलिए इस को कहीं और झुकाने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता।
कचहरी में नवाब वज़ीर खान के साथ और भी बड़े बड़े दरबारी बैठे हुए थे। दरबार में प्रवेश करते ही जोरावर सिंघ तथा फतेह सिंघ दोनों भाईयों ने गर्ज कर जयकारा लगाया–
‘#वाहिगुरूजी_का_खालसा, #वाहिगुरूजी_की_फतेह’।
नवाब तथा दरबारी, बच्चों का साहस देखकर आश्चर्य में पड़ गये।मुगलिया फरमान बच्चो को सुनाया गया मुसलमान बनना स्वीकार नहीं करोगे तो कष्ट दे देकर मार दिये जाओगे और तुम्हारे शरीर के टुकड़े सड़कों पर लटका दिये जायेंगे ताकि भविष्य में कोई सिक्ख बनने का साहस ना कर सके।’’इस्लाम कबूल करने की, तो हमें सिक्खी जान से अधिक प्यारी है। दुनियाँ का कोई भी लालच व भय हमें सिक्खी से नहीं गिरा सकता। हम पिता गुरू गोबिन्द सिंघ के शेर बच्चे हैं तथा शेरों की भाति किसी से नहीं डरते। हम इस्लाम धर्म कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे। तुमने जो करना हो, कर लेना।
हमारे दादा श्री गुरू तेग बहादुर साहिब ने शहीद होना तो स्वीकार कर लिया परन्तु धर्म से विचलित नहीं हुए। बच्चो की बाते सुनकर नवाबवजीर खान तिलमिला गया और छोटे छोटे बच्चो को नीव में चिनवाने का आदेश दिया दिल्ली के शाही जल्लाद साशल बेग व बाशल बेग ने #जोरावरसिंघ व #फतेहसिंघ को किले की नींव में खड़ा करके उनके आसपास दीवार चिनवानी प्रारम्भ कर दी।बनते-बनते दीवार जब #फतेहसिंघ के सिर के निकट आ गई तो #जोरावरसिंघ दुःखी दिखने लगे। काज़ियों ने सोचा शायद वे घबरा गए हैं और अब धर्म परिवर्तन के लिए तैयार हो जायेंगे। उनसे दुःखी होने का कारण पूछा गया
तो #जोरावर बोले #मृत्युभय तो मुझे बिल्कुल नहीं। मैं तो सोचकर उदास हूँ कि मैं बड़ा हूं, #फतेहसिंघ छोटा हैं। दुनियाँ में मैं पहले आया था। इसलिए यहाँ से जाने का भी पहला अधिकार मेरा है। #फतेहसिंघ को धर्म पर बलिदान हो जाने का #सुअवसर मुझ से पहले मिल रहा है।छोटे भाई #फतेहसिंघ ने #गुरूवाणी की पँक्ति कहकर दो वर्ष बड़े भाई को साँत्वना दी:
#चिंता_ताकि_कीजिए_जो_अनहोनी_होइ ।।
#इह_मारगि_सँसार_में_नानक_थिर_नहि_कोइ ।।
दोनों छोटे साहिबजादे धर्म की रक्षा के लिए शहीद हो गये खबर जब माता गुजरी जी तक पहुची तो उन्होंने भी अपने शारीर का त्याग कर दिया चारो साहिबजादों की सहादत के बाद भी #गुरुगोबिंदसिंह जी विचलित नही हुए उनके मुख से यही वाक्य निकला
#इन_पुत्रन_शीश_पर_वार_दिए_सूत_चार
#चार_मुए_तो_क्या_हुआ_जीवत_कई_हजार
ये भारत वर्ष के इतिहास की महत्वपूर्ण व् यादगार घटना है कृपया इसका उल्लेख अपने बच्चों से आज अवश्य करें और अपने इतिहास के बारे में अवगत कराए ।
वन्दे भारत मातरम् ... 🙏
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