"स्तंभ - 179"भारत की आजादी के बाद सरकार ने डॉ भीमराव रामजी अंबेडकर को आमंत्रित किया था। डॉ अम्बेडकर ने स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। उन्हें भारत के नए संविधान और संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। निर्माण समिति के अध्यक्ष होने के नाते संविधान को वास्तुकार रूप देने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ अम्बेडकर द्वारा तैयार किया गया संविधान, पहला सामाजिक दस्तावेज था। सामाजिक क्रांति को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने आवश्यक शर्तों की स्थापना की।अम्बेडकर द्वारा तैयार किए गए प्रावधानों ने भारत के नागरिकों के लिए संवैधानिक आश्वासन और नागरिक स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान की। इसमें धर्म की स्वतंत्रता, भेदभाव के सभी रूपों पर प्रतिबंध और छुआछूत को समाप्त करना भी शामिल था। अम्बेडकर जी ने महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की भी वकालत की। उन्होंने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और अन्य पिछड़े वर्ग के सदस्यों के लिए प्रशासनिक सेवाओं, कॉलेजों और स्कूलों में नौकरियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करने का कार्य किया।जाति व्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जिसमें एक व्यक्ति के स्थिति, कर्तव्यों और अधिकारों का भेद किसी विशेष समूह में किसी व्यक्ति के जन्म के आधार पर किया जाता है। यह सामाजिक असमानता का कठोर रूप है। बाबासाहेब अम्बेडकर का जन्म एक माहर जाति के एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके परिवार को निरंतर सामाजिक और आर्थिक भेदभाव के अधीन रखा गया था।बचपन में उन्हें महार जाति, जिसे एक अछूत जाति माना जाता है से होने के कारण सामाजिक बहिष्कार, छुआछूत और अपमान का सामना करना पड़ता था। बचपन में स्कूल के शिक्षक उनपर ध्यान नहीं देते थे और ना ही बच्चे उसके साथ बैठकर खाना खाते थे, उन्हें पानी के बर्तन को छुने तक का अधिकार नहीं था तथा उन्हें सबसे दुर कक्षा के बाहर बैठाया जाता था।जाति व्यवस्था के कारण, समाज में कई सामाजिक बुराईयां प्रचलित थीं। बाबासाहेब अम्बेडकर के लिए धार्मिक धारणा को समाप्त करना आवश्यक था जिस पर जाति व्यवस्था आधारित थी। उनके अनुसार, जाति व्यवस्था सिर्फ श्रम का विभाजन नहीं बल्कि मजदूरों का विभाजन भी था। वे सभी समुदायों की एकता में विश्वास रखते थे। ग्रेज इन में बार कोर्स करने के बाद उन्होंने अपना कानूनी व्यवसाय शुरू किया। उन्होंने जातिगत भेदभाव के मामलों की वकालत में अपना अद्भुत कौशल दिखाया। बाबासाहेब ने दलितों के पूर्ण अधिकारों के लिए कई आंदोलनों की शुरूआत की। उन्होंने सभी जातियों के लिए सार्वजनिक जल स्रोत और मंदिरों में प्रवेश करने के अधिकार की मांग की। डॉ भीमाराव अम्बेडकर को जिस जाति भेदभाव के कारण पूरे जीवन पीड़ा और अपमान का सामना करना पड़ा था, उन्होंने उसी के खिलाफ लड़ने का फैसला किया। उन्होंने अस्पृश्यों और अन्य उपेक्षा समुदायों के लिए अलग चुनावी व्यवस्था के विचार का प्रस्ताव रखा। उन्होंने दलितों और अन्य बहिष्कृत लोगों के लिए आरक्षण की अवधारणा पर विचार करते हुए इसे मूर्त रुप दिया। 1932 में, सामान्य मतदाताओं के भीतर अस्थायी विधायिका में दलित वर्गों के लिए सीटों के आरक्षण हेतु बाबासाहेब अम्बेडकर और पंडित मदन मोहन मालवीय जी के द्वारा पूना संधि पर हस्ताक्षर किया गया।पूना संधि का उद्देश्य, संयुक्त मतदाताओं की निरंतरता में बदलाव के साथ निम्न वर्ग को अधिक सीट देना था। बाद में इन वर्गों को अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के रूप में संदर्भित किया गया। लोगों तक पहुंचने और उन्हें सामाजिक बुराइयों के नकारात्मक प्रभाव को समझाने के लिए अम्बेडकर जी ने मूकनायक (चुप्पी के नेता) नामक एक अख़बार शुभारंभ किया।बाबासाहेब अम्बेडकर, महात्मा गांधी के हरिजन आंदोलन में भी शामिल हुए। जिसमे उन्होंने भारत के पिछड़े जाति के लोगों द्वारा सामना किए जाने वाले सामाजिक अन्याय के विरोध में अपना योगदान दिया। बाबासाहेब अम्बेडकर और महात्मा गांधी उन प्रमुख व्यक्तियो में से एक थे, जिन्होंने भारत से अस्पृश्यता को समाप्त करने में बहुत बड़ा योगदान दिया।इस प्रकार डॉ बीआर अम्बेडकर जी ने जीवन भर न्याय और असमानता के लिए संघर्ष किया। उन्होंने जाति भेदभाव और असमानता के उन्मूलन के लिए काम किया। उन्होंने दृढ़ता से न्याय और सामाजिक समानता में विश्वास किया और यह सुनिश्चित किया कि संविधान में धर्म और जाति के आधार पर कोई भेदभाव ना हो। वे भारतीय गणराज्य के संस्थापको में से एक थे। जय जय भारत ।

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