//स्तम्भ - 151//
भारत के लिए क्या है जिनपिंग के राष्ट्रपति बने रहने के मायने !
पिछले 80 वर्षों के इतिहास में लाखों-करोड़ों लोगों की हत्याएं करने वाली सीसीपी (चीनी कम्युनिस्ट पार्टी) का 20वां अधिवेशन 16 अक्टूबर रविवार को बेजिंग में शुरू किया गया है, जहां राष्ट्रपति के रूप में चीनी तानाशाह शी जिनपिंग के नाम पर तीसरी बार मुहर लगाई जानी है, मोटे तौर पर तानाशाहों को चुनने वाली इस प्रक्रिया को दुनिया के सामने चीन लोगों द्वारा चुने हुए राष्ट्रप्रमुख के रूप में दिखाने का प्रयत्न करते आया है।
हालांकि करोड़ो लोगों की हत्याएं करने वाले माओ जडोंग से लेकर दसियों लाख लोगों को यातना शिविरों में कैद कर उनके साथ बर्बरता करने वाले ज़िनपिंग तक को चुनने के क्रम में सीसीपी की राष्ट्रीय कांग्रेस जब भी बैठी उसने विशुद्ध रूप से एक तानाशाह को ही चुना है, ज़िनपिंग को लेकर तो यह चुनाव इतना स्वाभाविक है कि माओ के उपरांत सीसीपी के इतिहास में वे सबसे शक्तिशाली तानाशाह के रूप में उभरे हैं, तो किसी और के उनके विरुद्ध दावेदारी करने अथवा ऐसी कोई कल्पना की अपेक्षा भी निरर्थक ही है।
चीनी प्रशासनिक तंत्र पर ज़िनपिंग के नियंत्रण को इस महत्वपूर्ण बैठक से पूर्व बेजिंग में हुए विरोध प्रदर्शनों के तस्वीरों को कुछेक घंटो में पूरी तरह से इंटरनेट से हटाने एवं चीन की कमजोर होती अर्थव्यवस्था के आंकड़ों को जारी होने से रोकने से समझा जा सकता है हालांकि एक राष्ट्र जो एक शताब्दी से तानाशाही शासन व्यव्यस्था के अधीन रहा हो वहां इसे बेहद सामान्य ही माना जा सकता है।
खैर इन सब के बीच पार्टी कांग्रेस में चीन के राष्ट्रपति के रूप में शी जिनपिंग के नाम पर लगने वाली मुहर, भारत के दृष्टिकोण से चीन के साथ सीमा पर चल रहे विवाद समेत अन्य मोर्चों पर वर्तमान समस्याओं को यथावत बनाये रखने की पुष्टि करने वाला ही है जिसके एशिया समेत वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में भी अपने दुष्प्रभाव हैं। भारत के संदर्भ में बात की जाए तो जिनपिंग के राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने से वर्ष 2020 से लद्दाख की पूर्वी सीमा पर चल रहे गतिरोध के जारी रहने एवं ऐसे दूसरे मोर्चे पर दोनों देशों की सेनाओं के उलझने की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता।
इन आशंकाओं को बल मिलना इसलिए भी स्वाभाविक है कि पार्टी कांग्रेस के अधिवेशन के शुरुआती सत्र में पिछले पांच वर्षों में चीन की उपलब्धियों को लेकर चीन भर के डेलिगेट्स को दिखाए गए वीडियो में ना केवल गलवान घाटी में हुए संघर्ष की क्लिप को भी सम्मिलित किया गया है अपितु इसी संघर्ष में चीन के घायल कमांडर क़ी फ़बाओ को देश भर से चुने गए लगभग 2300 प्रतिनिधियों में भी स्थान दिया गया है।
दरअसल गलवान संघर्ष को जोर-शोर से प्रचारित करने एवं संघर्ष में घायल कमांडर फ़बाओ को चीनी नायक के रूप में प्रस्तुत करने के पीछे ज़िनपिंग की मंशा कोविड कुप्रबंधन एवं इसके परिणामस्वरूप आर्थिक रूप से कमजोर पड़ते चीन की कमियों को थोथली देशभक्ति के स्वरूप में आगे रखने की है ताकि पार्टी समेत जनता में बढ़ रहे उनके विरोध को चीन विरोधी एजेंडे के रूप में स्थापित किया जा सके।
हालांकि गलवान अथवा फ़बाओ को हथियार बनाकर अपनी नाकामियों एवं मानवता विरोधी कृत्यों को छुपाने का ज़िनपिंग का यह प्रयास कोई नया नहीं और इससे पूर्व बीजिंग शीतकालीन ओलिंपिक खेलो के उद्घाटन सत्र में भी ज़िनपिंग गलवान कार्ड खेलने का प्रयास कर चुके हैं, दरअसल ज़िनपिंग जानते है कि लगभग 20 प्रतिशत के आस पास खड़ी बेरोजगारी दर से लेकर धीमी विकास दर एवं कोविड प्रतिबंधों से त्रस्त जनता को वर्तमान परिस्थितियों में देशभक्ति का झुनझुना थमाने से बेहतर और कुछ भी नहीं।
इन सब से इतर ज़िनपिंग का तीसरा कार्यकाल चीन में रह रहे उन करोड़ो तिब्बती एवं उइघुर अल्पसंख्यकों के उस दु स्वप्न के जारी रहने का भी संकेत है जिन्हें चीनी तानाशाह के शासनकाल में अपनी संस्कृति अपनी सभ्यता अपना अस्तित्व बचाने की चुनौती से जूझना पड़ रहा है, इस क्रम में यातना शिविरों में उइगरों पर हो रही बर्बरता से लेकर तिब्बती संस्कृति के प्रतिक चिन्हों को मिटाने की शासन की नीति के और कठोरता से लागू किए जाने की आशंकाए भी जताई जा रही है।
वैश्विक परिदृश्य की बात करें तो पाकिस्तान एवं भीतरखाने से तालिबान की सहायता से लेकर दक्षिण चीन सागर में दादागिरी, ताइवान, हांगकांग, कर्ज जाल की आर्थिक नीति, कोविड महामारी समेत ऐसी कई ऐसी गंभीर चुनौतियां हैं जो ज़िनपिंग के चीन के राष्ट्रपति बने रहने की परिस्थिति में वैश्विक अस्थिरता को ही बढ़ावा देंगी ।
जय जय भारत --- 🙏
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