जनसंख्या पर संघ प्रमुख जी का वक्तव्य

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विजयदशमी के दिन संघ प्रमुख श्री मोहन जी भागवत ने देश की बढ़ती जनसंख्या एवं पांथिक आधार पर उसके असंतुलन को लेकर महत्वपूर्ण बयान दिया है, नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में दशहरे के दिन स्वयंसेवकों को दिए गए अपने परंपरागत उद्बोधन में संघ प्रमुख जी ने कहा कि "बढ़ती जनसंख्या देश के लिए बड़ा बोझ है जिसके लिए समग्र नीति तैयार किए जाने की आवश्यकता है।" 

संघ प्रमुख जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि जब जब बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ पांथिक आधार पर जनसंख्या का असंतुलन उत्पन्न हुआ है, तब तब राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं में भी परिवर्तन होता है, इसलिए बढ़ती जनसंख्या के साथ ही पंथिक आधार पर जनसंख्या का बढ़ता असंतुलन भी बेहद महत्वपूर्ण विषय है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।

संघ प्रमुख जी ने कहा कि "जनसंख्या असंतुलन का परिणाम एक राष्ट्र के रूप में हम एक बार भगत चुके हैं और यह केवल हमारे साथ ही नहीं हुआ है, जनसंख्या के असंतुलन के कारण ही इंडोनेशिया से पूर्वी तिमोर, सूडान से दक्षिणी सूडान एवं सर्बिया से कोसोवो जैसे राष्ट्र पृथक हो चुके हैं।" 

इस क्रम में संघ प्रमुख जी में ने आगे कहा कि "जनसंख्या के लिए समग्र नीति तैयार किए जाने की आवश्यकता है जो सभी पर समान रूप से लागू की जा सके, संघ प्रमुख ने कहा कि एक बार नीति लागू हो जाने के उपरांत किसी को भी इसमें छूट नहीं दी जानी चाहिए और समाज को भी ऐसी किसी भी नीति को स्वीकार करना चाहिए।"

दरअसल संघ प्रमुख का बयान ऐसे समय पर आया है जब देश बढ़ती जनसंख्या के साथ ही जनसंख्या के पांथिक असंतुलन के खतरे से बुरी तरह से जूझ रहा है, इस क्रम में हालिया कुछ वर्षों से आसाम, उत्तर प्रदेश, बिहार समेत पश्चिम बंगाल के सीमाई क्षेत्रों में तेजी से हो रहा जनसांख्यिक परिवर्तन ना केवल सामाजिक सौहार्द अपितु राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी बेहद गंभीर चुनौती बनकर उभरा है। 

दरअसल सीमाई क्षेत्रों में जनसंख्या के संतुलन में तेजी से हो रहा परिवर्तन राष्ट्रीय अखंडता एवं संपूर्णता के लिए प्रत्यक्ष रूप से खतरा तो है ही इसने इन क्षेत्रों में हिन्दू जनसंख्या के लिए भी स्वतंत्रता से अपनी परंपराओं के अनुपालन में समस्याएं खड़ी कर दी है, परिणामस्वरूप इन क्षेत्रों से हिन्दू समुदाय का पलायन अब वास्तविकता है।

इस क्रम में सबसे ज्यादा प्रभावित बांग्लादेश की सीमा से लगे असम, बिहार एवं पश्चिम बंगाल जैसे राज्य हैं जहां मुस्लिम समुदाय की बढ़ती जनसंख्या जिसमें बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी एवं रोहंगिया घुसपैठिए शामिल हैं ने सीमाई क्षेत्रों में क्षेत्र में जनसंख्या के भारी असंतुलन को जन्म दिया है फलस्वरूप इन क्षेत्रों से हिन्दू जनसंख्या का पलायन भी देखने को मिला है। 

इस क्रम में पश्चिम बंगाल की बात करें तो मुशीराबाद, मालदा एवं उत्तर दिनाजपुर में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या क्रमशः 66%, 51%,एवं 50 % है, इसके अतिरिक्त बीरभूम (37%) एवं दक्षिण 24 परगना (35%) में भी वोट बैंक के दृष्टिकोण से यह जनसंख्या निर्णायक है। जनसंख्या के इस असंतुलन का प्रभाव पिछले विधानसभा चुनावों के परिणामों के उपरांत हुई हिंसा एवं सुदूर सीमाई क्षेत्रों में बसे गांवों से हिन्दू समुदाय के पलायन से समझी जा सकती है।

पश्चिम बंगाल की स्थिति इसलिए भी वीभत्स है कि ममता बनर्जी की अगुवाई वाली राज्य सरकार की तुष्टिकरण की नीति ने इन क्षेत्रों में बसे हिन्दू जनसंख्या के लिए परिस्थितियों को और कठिन बना दिया है, यहां की धरातलीय स्थिति का अनुमान इससे ही लगाया जा सकता है कि कानून व्यव्यस्था यहां अमूमन भीड़ तंत्र के हवाले दिखती है जो सम्प्रदाय विशेष के तय मापदंडों के साथ अपना वर्चस्व चाहता है परिणामस्वरूप सुनियोजित हिंसा, जबरन धर्म परिवर्तन, सनातनी परंपराओं में दखलंदाजी बेहद सामान्य बात है।

इसे ऐसे समझे कि पिछले वर्ष मालदा जिले के कालीचक पुलिस थाना अंतर्गत थानाध्यक्ष (जो कि स्वयं हिन्दू समुदाय से है) हिंदुओं को धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित करते पाया गया जिसके उपरांत उस पर कार्यवाही के लिए हिन्दू समुदाय के लोगों को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

बताने की आवश्यकता नहीं कि इन मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हाल ही में प्रतिबंधित किए गए कट्टरपंथी संगठन पीएफआई एवं उसके पूर्व के मातृ संगठन सिमी का भी मजबूत नेटवर्क है, फलस्वरूप लक्षित कार्यवाहियां भी बेहद आम हैं, राज्य की तुष्टिकरण की नीति का प्रभाव ऐसा है कि इन क्षेत्रों में स्थानीय हिन्दू शिक्षकों की इस्लामिक जलसों में उपस्थिति भी अनिवार्य मापदंड जैसा है।

इस संदर्भ में कानून व्यवस्था की एक झलक अभी हाल ही में तब देखने को मिली थी जब मुर्शिदाबाद में हिजाब पहनी युवती को स्कूल परिसर में आने से रोकने पर स्थानीय मुस्लिम भीड़, हिन्दू शिक्षक के खून की प्यासी दिखाई दे रही थी, इस प्रकरण में ही विद्यालय परिसर में बम फोड़े गए थे, यहां तक कि उक्त शिक्षक को जान बचाने के लिए पुलिस की उपस्थिति में गिड़गिड़ाते हुए भीड़ से माफी मांगनी पड़ी थी।

जनसंख्या के असंतुलन जनित ऐसी ही कुछ परिस्थितियां असम एवं बिहार के सीमाई क्षेत्रों में भी देखी जा सकती है, असम की बात करें तो यहां बांगलादेशी घुसपैठियों का मुद्दा कई दशकों से राजनीति की धुरी रहा है, तुष्टीकरण की नीति एवं घुसपैठ ने इस क्षेत्र की जनसांख्यिकी पर कितना असर डाला है इसे 1940 में लगभग 75 % रही हिन्दू जनसंख्या के वर्ष 2011 में 61 % तक सिमटने से बखूबी समझा जा सकता है, वर्तमान में राज्य के 29 जिलों में से 12 मुस्लिम बहुल है, जिनमें बांग्लादेश के सीमा से लगने वाले धुबरी में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या लगभग 80 %, बारपेटा में 78 % एवं दक्षिण सलमरा जिले में लगभग 98 % हो चली है। 

जनसंख्या के असंतुलन जनित परिस्थितियों के कारण ही राज्य के सीमाई क्षेत्रों में वर्ष 2012 में भीषण साम्प्रदायिक दंगे भी हुए थे जिसके विरोध स्वरूप मुंबई के आज़ाद मैदान दंगो में मुस्लिम भीड़ ने सड़क पर जमकर उत्पात मचाया था, इसके अतिरिक्त भी राज्य में बांग्लादेशी आतंकवादी संगठन हरकत उल मुजाहिदीन एवं अलकायदा तक के मोड्यूएल का भंडाफोड़ हो चुका है, इसी संदर्भ में अभी हाल ही में हिमंता विश्व शर्मा की अगुवाई वाली राज्य सरकार ने कई मदरसों के ध्वस्तीकरण की कार्यवाही भी की थी।

बिहार की बात करें तो इसके पूर्वी सीमा से लगे पूर्णिया प्रमंडल में मुस्लिम जनसंख्या लगभग 46 प्रतिशत है जिसमें कटिहार (45 %), अररिया (43 %), पूर्णिया (39 %) एवं किशनगंज में ( 68 %) मुस्लिमों की अच्छी खासी जनसंख्या हैं, यह बताने की आवश्यकता नहीं कि पिछले कुछेक वर्षो में यह क्षेत्र लव जिहाद जैसे संगठित अपराधों, एवं कट्टरपंथी विचारों की अगुवाई करने वाली ए आई एम आई एम का गढ़ बनकर उभरा है, हैरानी की बात नहीं कि अभी हाल ही में प्रतिबंधित हुए कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन पीएफआई का राज्य मुख्यालय भी पूर्णिया में ही स्थापित है जहां सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार संगठन ने अपना मजबूत नेटवर्क खड़ा किया है।

राज्य में कट्टरपंथियों की मजबूत उपस्थिति अभी हाल ही में पटना के फुलवारीशरीफ से बरामद किए गए पीएफआई के वर्ष 2047 तक भारत को इस्लामिक राज्य बनाने वाले डॉक्यूमेंट से स्पष्ट होती है जिसके अनुसार संगठन अब तक बिहार के 15000 मुस्लिम युवकों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण दे चुका है।

हालांकि चिन्हित क्षेत्रो में जनसंख्या का असंतुलन उत्पन्न करने का यह प्रयास केवल पश्चिम बंगाल, असम एवं बिहार तक ही सीमित नहीं है, इस संदर्भ में अभी कुछ ही महीनों पहले पूर्वी उत्तरप्रदेश की नेपाल से लगने वाली उत्तरी सीमा पर बड़े पैमाने पर अवैध घुसपैठ एवं अवैध मदरसों, मजारों एवं मस्जिदों के निर्माण की खबर सामने आई थी जिसके उपरांत उत्तरप्रदेश की सरकार ने इसके जांच के आदेश दिए हैं, जानकारी के अनुसार यह अवैध बस्तियां सुनियोजित रूप से बसाई जा रही हैं जिसकी उपस्थिति भारत सहित नेपाल सीमा के उस पार भी देखी जा सकती है।

ये उन कुछ क्षेत्रों की स्थिति है जहां जनसंख्या का यह असंतुलन बड़े भूभाग पर देखा गया है, हालांकि इसमें भी संशय नहीं कि देश भर में ऐसे छोटे छोटे सैकड़ो पॉकेट्स हैं जहां जनसांख्यिकी में आए परिवर्तन के कारण हिन्दू समुदाय को पलायन की राह लेनी पड़ी है, इस संदर्भ में उत्तरप्रदेश के कैराना से लेकर, मेरठ, आगरा, गुजरात के बहरुच, झारखंड के गिरिडीह, यहां तक कि राजधानी दिल्ली के ब्रह्मपुर, सीलमपुर जैसे सैकड़ो ऐसे उदाहरण हैं जहां समुदाय विशेष के बढ़ते वर्चस्व के कारण हिन्दू समुदाय को जबरन पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा हो।

यह भी कि यह वीभत्स स्थिति तब है जब देश मे 80 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू समुदाय की है जिसने सदैव ही सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समभाव की अवधारणा में विश्वास किया है, संवैधानिक रूप से भी हम मूलतः एक पंथ निरपेक्ष राष्ट्र हैं, हालांकि इन सब के बीच अप्रिय सत्य यह भी है कि जनसंख्या के असंतुलन जनित परिस्थितियों के कारण ही लाखो कश्मीरी हिंदुओं को अपनी पुरखों की भूमि छोड़ने को बाध्य होना पड़ा, देश को विभाजन की त्रासदी तक झेलनी पड़ी, साम्प्रदायिक दंगों में लाखों लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी, लाखों स्त्रियों की अस्मत लूटी गई, और लाखों को बेघर होना पड़ा।

इसलिए यह बेहद आवश्यक है कि संघ प्रमुख द्वारा दिए गए बयान की सरकार गंभीरता से विवेचना करे और तीव्र गति से हो रहे जनसंख्या के असंतुलन को रोकने के लिए कोई ठोस एवं प्रभावी नीति लाए, सरकार एवं सबसे अधिक नागरिक समाज को यह समझना होगा की जनसंख्या के असंतुलन का यह खतरा प्रत्यक्ष रूप से ना केवल देश की अखंडता एवं संप्रभुता के लिए घातक है अपितु यह एक सभ्यता, संस्कृति के रूप में हमारे अस्तित्व को बचाए रखने की दृष्टि से भी एक बेहद गंभीर चुनौती है।

जय जय भारत --- 🙏

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