"स्तंभ - 144"
*यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः"

मतलब कि जब सभी लड़कियों को देवी मानकर पूजेंगे तो फिर ब्याह भी देवी से ही कर लेंगे और देवी को ही लवर बना लेंगे..??

ऐसा कहकर मेरा मित्र ठहाका लगाकर हँसने लगा...!!
उसके साथ ही मैं भी हँसने लगा..!

हमदोंनो के हँसी में अंतर सिर्फ ये था कि वो इस श्लोक पर हँस रहा था और मैं उसकी बुद्धि पर...!

हँसी के बाद मैंने उससे कहा कि... जानते हो ?
असल में इसी दुविधा के समाधान हेतु अज्ञानियों को धर्मग्रंथ पढ़ने से मना किया गया था..
ताकि, वे अर्थ का अनर्थ न कर दें..!

असल में होता ये है कि... तुम्हारी ही तरह एक बुद्धिमान लड़का था.
उसको स्कूल में मास्टर जी ने महत्वपूर्ण बताते हुए गणित का एक प्रश्न बताया कि...

मान लो , तुम्हारे पास 6 आम हैं और उसमें से आधे अर्थात 3 आम तुमने अपने एक दोस्त को दे दिए तो तुम्हारे पास कितने आम बचे ???

इस प्रश्न के हल के लिए तुम 6 आम में से उसके आधे अर्थात 3 आम को घटा देना जिससे उसका उत्तर निकल आएगा..!

तो, उत्तर हुआ : 6-3 = 3 आम.

उस विद्यार्थी ने ये प्रश्न और उसका उत्तर रट लिया.

और, अपने सभी मित्रों को भी खूब अच्छे से समझा समझा कर बताने लगा कि अगर ये प्रश्न आ जाये तो उसका उत्तर ये होगा.

फिर, परीक्षा हुई और उस परीक्षा में सभी लड़के पास हो गए सिवाए उस पहले लड़के के.

उसका रिजल्ट देखकर मास्टर साहब को बहुत आश्चर्य हुआ कि इसका सिखाया सभी लड़के पास कर गए लेकिन ये खुद कैसे फेल कर गया ??

जब लड़के को बुलाकर पूछा तो उसने बताया कि... आपने ने 6 आम वाले प्रश्न में बताया था कि 3 घटा देना है.
लेकिन, परीक्षा में तो 6 आम वाला प्रश्न आया ही नहीं था बल्कि 10 आम वाला प्रश्न आया था.
इसीलिए, मैंने वो प्रश्न छोड़ दिया क्योंकि मुझे वो नहीं मालूम था.

यही हाल तुमलोगों का है.

तुमने जो श्लोक कहा है वो असल में मनुस्मृति का श्लोक है..
और, उसका पूरा श्लोक है....

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।। 
(मनुस्मृति 3/56 )

इसका मतलब होता है...
जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं.. 
और, जहाँ स्त्रियों की पूजा नहीं होती है, वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं.

इसका तात्पर्य ये नहीं है कि... स्त्री को बैठा के धूप, दीप , अक्षत और प्रसाद आदि चढ़ा के पूजा करने लगो.

बल्कि, इसका तात्पर्य ये है कि... जहाँ स्त्रियों और उनकी भावना का सम्मान होता है वो घर स्वर्ग सरीखा बन जाता है अर्थात वहाँ देवताओं का वास होता है.
लेकिन, अगर तुम स्त्रियों की भावना का सम्मान नहीं करोगे तो तुम्हारा कमाया सारा धन और इज्जत मटियामेट हो जाएगा.

अब इसकी प्रासंगिकता को समझने को समझने के लिए पहले बेसिक को समझो..

बेसिक ये है कि.... स्त्रियाँ खुद के लिए नहीं जीती हैं बल्कि वे खुद से ज्यादा अपने परिवार यथा अपने पति और बच्चों के लिए चिंतित रहती हैं.
अगर तुम चाहो तो इसमें अपनी प्रेयसी भी जोड़ लो.

वो हमेशा अपने से जुड़े लोगों के प्रति चिंतित रहती हैं और उनके भलाई के लिए वे कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहती है.

तुम ... जितिया से लेकर करवाचौथ अथवा नवरात्र या छठ पर्व कोई भी कठिन से कठिन पर्व उठा कर देख लो...
सभी पर्व त्योहार स्त्रियाँ ही करती है लेकिन कोई भी पर्व स्त्रियों के खुद के लिए नहीं है.

बल्कि, सारे पर्व परिवार के लिए ही होते हैं जिन्हें वो खुशी से करती हैं.

लेकिन, यदि मान लो कि.... इसके बाद भी उनकी भावना का सम्मान नहीं होता है..
तो, फिर उसका विश्वास डगमगाने लगता है..

और, वे अपने परिवार की भलाई हेतु इससे भी इतर कुछ खोजने लगती है.

जिस कारण... वे ढोंगी बाबा, गंडे-ताबीज, टोटका आदि के चक्कर में पड़ जाती है.

इसीलिए.... तुमने गौर किया होगा कि अधिकांश बाबाओं के पुरुष से ज्यादा स्त्रियाँ जाती है और उनकी भक्त बनती है.

और, परिणामस्वरूप... घर का पैसा भी जाता है, इज्जत भी जाती है और कभी कभी जान भी चली जाती है.

इसीलिए, हमारे धर्मग्रंथों में नारी को पूजने अर्थात उनके भावना की सम्मान की बात कही गई...

कि.... अगर स्त्री अपने पति के शराब पीने के कारण दुखी है, नहीं कमाने के कारण दुखी है, उसके खराब व्यवहार के कारण दुखी है... या फिर, किसी और कारण से दुखी है...
तो, फिर उस स्थिति में .... उनकी मनोस्थिति को समझते हुए... समुचित कदम उठाने चाहिए...

जिससे, वे ऐसे चक्करों में न पड़ें.. और, घर में खुशहाली बनी रहे.

इसी खुशहाली बने रहने को शास्त्रों में "तत्र देवताः" कहा गया है.

तो, इतना लंबा चौड़ा समझाने की जगह शास्त्रों में लिख दिया गया कि...

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः !!

शायद मेरी बात... मेरे मित्र को भी समझ आ गई और इसके बाद वो सहमति में मुंडी हिलाकर चला गया.

तो... इस संबंध में मेरा सिर्फ ये कहना है कि हमारे धर्मग्रंथों में लिखी बात गलत नहीं है बल्कि वो हर कालखंड में प्रासंगिक है.. 
क्योंकि , वो एक सिद्धांत (फार्मूला) है.

और , सिद्धांत कभी गलत नहीं हुआ करते हैं.

जरूरत है तो सिर्फ उस सिद्धांत (फॉर्मूले) को वर्तमान के समय और परिस्थिति पर अप्लाई करने की.

जैसे कि... 6 आम में आधे अर्थात 3 आम दोस्त को दे दिए तो 3 बचेंगे.

और, 10 आम में से उसके आधे आम अर्थात 5 दे देंगे तो 5 बचेंगे.

इसमें सिद्धांत (फार्मूला) 6 या 10 नहीं है... 
बल्कि, सिद्धांत (फार्मूला) है कि... 
हमें उपरोक्त संख्या का आधा दे देना है.
जय माता दी

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