Blog #25#

मेरा भारत महान क्यों है??????

अगर आप हमारे देश का इतिहास और पौराणिक कथाए देखे तो उनमे ऐसे बहुत से आविष्कार, यान, सूत्र, सारणी आदि का प्रयोग और उनका ज्ञान दिया गया है, जिसे सुन और पढकर आधुनिक विज्ञान भी दांतों तले उंगलियाँ दबा लेता है, तथा पौराणिक कथाओं में वर्णित ऋषि-मुनि विज्ञान की खोज से भी पहले उन चमत्कारों को दर्शा चुके थे, जिन्हें विज्ञान अपना आविष्कार मानता है। 

फर्क बस इतना है कि पहले इन्हें चमत्कारों की श्रेणी में रखा जाता था और अब यह वैज्ञानिक करामात बन गए हैं, परन्तु आज भारत की सबसे बड़ी बिडम्बना यह है की कुछ कुंठित बुद्धिजीवी इन्हें मात्र कहानी मानते है, यह मानसिक गुलाम बुद्धिजीवी तो इतने मानसिक रूप से गुलाम बन चुके है, की बिना कुछ सोचे समझे और अध्यन किये ही इन सबको काल्पनिक करार दे देते है।

सज्जनों! जबकि खुद अब्दुल कलाम ने कई बार कहा है की उन्हें प्राचीन भारतीय ग्रंथो से मिसाइल बनाने की प्रेरणा मिलती थी, अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी कई बार प्राचीन भारतीय ग्रंथो की भूरी भूरी प्रशंसा की है, अभी कुछ समय पहले भी “हिस्ट्री चैनल” ने यह रहस्योघाटन किया था की हिटलर प्राचीन भारतीय ग्रंथो पर अध्यन कर टाईम मशीन बनाना चाहता था।

जी हाँ, दिल्ली में कुतुबमीनार के पास ही सेकड़ो साल से “अशोक की लाट” शान से खड़ी है,  और आज तक इस पर जंग भी नहीं लगा, कई देशो के वैज्ञानिको ने इस पर अनेक बार अध्यन कर चुके है, लेकिन आज तक कोई इसका रहस्य नहीं जान पाया, अगर आप इस देश के कुंठित बुद्धिजीवियों से इसके बारे में पूछोगे तो वो बगले झाकने लगेंगे।

राजा विक्रमादित्य के काल में “व्याड़ी” नामक व्यक्ति की कहानी तो आपने सुनी ही होगी, जिसने अथक प्रयासों के बाद सोना बनाने की कला में महारत हासिल कर ली थी, यह बात विश्व के महानतम रहस्यों में से एक है, और सिद्ध नागार्जुन के बारे में कौन नहीं जानता, कहा जाता है की इन्होने जो ग्रन्थ लिखे थे, उनमे से अधिकांश चुरा कर विदेश पंहुचा दिए गए है, जहाँ पर इन ग्रंथो पर गुप्त रूप से अध्यन जारी है।

आजकल सभी देशों में न्यूलियर वेपन का परीक्षण करने की होड़ सी लगी है, आधुनिक वैज्ञानिक आणविक और परमाणु हथियारों को अपना आविष्कार मानते हैं, लेकिन सदियों पहले घटित हुए महाभारत के युद्ध में आणविक हथियारों का प्रयोग करने जैसी बात उल्लिखित है।

उस समय ना तो विज्ञान का आविष्कार हुआ था, और ना ही तकनीक का ही कोई नामोनिशान था, ईश्वर के वरदान के तौर पर ब्रह्मास्त्र जैसे हथियारों को प्राप्त किया जाता था, यह ब्रह्मास्त्र इतना शक्तिशाली था कि इसके पास समस्त ब्रह्मांड का विनाश करने की ताकत थी।

आधुनिक विज्ञान अपने को वैमानिकी का जनक मानता है, लेकिन कई प्राचीन भारतीय ग्रंथो में विमानों का विस्तार पूर्वक उल्लेख है, इनमे सबसे प्रसिद्द है “पुष्पक” विमान, जिसमे बैठ कर श्री रामचन्द्रजी माता सीता सहित अयोध्या पधारे थे, सबसे आश्चर्यजनक बात यह है की वैमानिकी को लेकर भारत में कई अति प्रसिद्ध ग्रन्थ भी लिखे गए थे, जिनमे से सबसे प्रसिद्ध है ऋषि भारद्वाज रचित “यन्त्र वर्चस्वं”।

स्टेफेन हाऊकिंग का मशहूर सिद्धांत जिसमे उन्होंने इस बात की व्याख्या की है, की धरती से बाहर अन्तरिक्ष में अलग स्थानों पर समय की गति भी भिन्न भिन्न होती है, परन्तु जिस बात को यह महाशय अभी कह रहे है, यही बात हमारे पुरानो के हजारो साल पहले भी कह दी थी, जिसके अनुसार अलग अलग ग्रह और लोको में समय की गति भी अलग अलग होती है, हरिवंश पुराण, ब्रह्म पुराण में इसके बारे में विस्तार से लिखा गया है।

भ्रूण स्थानांतरण अर्थात गर्भ के बाहर भ्रूण को उत्पन्न कर उसे गर्भ के भीतर स्थानांतरित करने का चमत्कार वैज्ञानिकों के नाम दर्ज है, आज के दौर में इस तकनीक को आइवीएफ यानि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन कहा जाता है, लेकिन असल में यह सबसे पहले तब अनुभव हुआ था जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, कंस को यह भविष्यवाणी हुई थी कि उसकी बहन देवकी की सातवीं संतान उसकी हत्या करेगी। 

इसलिए कृष्ण ने देवकी की छ: संतानों का वध कर दिया था, लेकिन सातवीं संतान के समय एक चमत्कार घटित हुआ जब उसके जन्म से पहले ही भगवान विष्णु ने योगमाया को यह निर्देश दिया था कि वह देवकी के गर्भ में पल रहे भ्रूण को वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दे।

न्यूटन को गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का जनक कहा जाता है, लेकिन शायद आपको जानकार आश्चर्य होगा की गुरुत्वाकर्षण जिसे भारतीय संदर्भो में आकर्षण सिद्धांत कहा जाता है की जानकारी भारतीयों को सेकड़ों साल पहले से ही थी।

अति प्रसिद्ध भारतीय ग्रन्थ “लीलावती” जिसे महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने अपनी पुत्री लीलावती के नाम पर लिखा था, इस ग्रन्थ में आकर्षण के सिद्धांत के बारे में विस्तार से लिखा गया है, इसी सन्दर्भ में एक कथा आती है की एक दिन लीलावती खेलते खेलते अपने पिता (भास्कराचार्य) के पास आती है और उनसे पूछती है की पिताजी यह सभी ग्रह जैसे सूर्य, धरती क़िस पर टिके हुए है।

तब भास्कराचार्य हँस कर कहते है की यह किसी पर भी नहीं टिके हुए, वास्तव में अन्तरिक्ष का कोई आधार नहीं है, तब लीलावती पुनः प्रश्न करती है की पिताजी फिर यह सभी ग्रह निचे क्यों नहीं गिर जाते, तब भास्कराचार्य कहते है की वास्तव में सभी ग्रह एक दुसरे की आकर्षण शक्ति से बंधे हुए है, और यही आकर्षण शक्ति है जो इन्हें आपस में इक्कठा रखे और टिकाये हुए है।

ऑर्गन ट्रांसप्लांट की विधा आजकल बहुत आम है, अगर मनुष्य के शरीर का कोई हिस्सा खराब हो गया है, या उसका कोई अंग भली प्रकार से कार्यरत नहीं है, तो चिकित्सक उसे शरीर से अलग कर आर्टिफिशियल या फिर किसी अन्य मनुष्य का अंग लगा देते हैं, लेकिन जानते हैं सबसे पहले इस विधा का प्रयोग कब हुआ था?

एक सामान्य बालक के रूप में जन्में पार्वती और महादेव की संतान भगवान गणेश के जन्म पर शनि देव भी उपस्थित थे, पौराणिक कथा के अनुसार शनिदेव की दृष्टि पड़ते ही भगवान शिव ने गणेश के सिर को त्रिशूल से धड़ से अलग कर दिया, इस घटना के बाद स्वयं विष्णु के कहने से सिर की तलाश में गये, इतने में ही उन्हें हाथी का बच्चा सोया हुआ नजर आया, उन्होंने हाथी के बच्चे का सिर काटकर गणेश जी के धड़ से जोड़ दिया।

17वीं शताब्दी में जिओवानी और रिचर नाम के दो वैज्ञानिकों ने सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी को मापा था। उनके अनुसार यह दूरी 140 मिलियन किलोमीटर थी, लेकिन क्या ये दूरी पहली बार मापी गई थी? इन दो वैज्ञानिकों की खोज से बहुत पहले लिखी गई हनुमान चालीसा का श्लोक “जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू” स्वयं इस दूरी को बयां करता है। 

इस श्लोक के अनुसार भानु अर्थात सूर्य, पृथ्वी से जुग सहस्त्र योजन की दूरी पर है,1 जुग अर्थात 12 हजार, सहस्त्र अर्थात 1000 और योजन 8 मील (1 मील = 1.6 किलोमीटर) 12000x1000x8मील का हिसाब (153,600,000 किलोमीटर) लगभग उसी संख्या को दर्शाता है, जो वैज्ञानिकों द्वारा मापी गई थी।

जय जय भारत --- 🙏

Comments

Popular posts from this blog