Blogg #15#
सावधान बोलता है भारत ? राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का एक गण नायक भी जानता है कि समय आने पर क्या करना है और कैसे करना है। वह कभी भ्रम या उलझन में नहीं रहता। ऊपर चाहे जो बोला गया हो, वह अपने अर्थ लगा देता है और सबके भावों में बड़ी स्पष्टता रहती है। यही नहीं, वे यह भी जानते हैं कि कब क्या बोलना है। इसी को संगठन कहते हैं।
उलझन किसे है?
उसी थुलथुल वर्ग को, जो सोचता है कि सोफे पर बैठकर पॉपकॉर्न खाते खाते वह जब भी संघ को फोन करेगा, स्वयंसेवक सिपाही लाठी डंडे लेकर निकल पड़ेंगे और वह बड़े आनंद से उसे TV पर लाइव एन्जॉय करेगा।इस वर्ग के कहने में तो इनकी बेटी, बेटे और पत्नी तक नहीं होती जबकि शेष दुनिया में बहुत बड़ी तोप बनकर घूमते हैं।भागवत जी के भाषण से संघ को #अपने_घर_का_नौकर टाइप समझने वाले # बच्चा_  बुद्धि लोगों की आशाओं पर घोर तुषारा पात हुआ है और कल से इनकी सुबकियां बन्द ही नहीं हो रही हैं।ये वही थुलथुल वर्ग है जो विगत 70 वर्ष से देश के दुर्भाग्य को ताकत देता रहा और इस खुशफहमी में भी रहा कि चारों ओर उसकी ही आवाज सुनी जाती है, उसकी ही चलती है, वह जब भी टेसुए बहाता है, सरकार उसके नाक पौंछने को तैयार मिलेगी। वह जब भी विक्टिम बन कर हाय हाय चिल्लायेगा, तुरंत ऊपर से हेलीकॉप्टर उतरेंगे और उसका पिछवाड़ा सहलाते हुए रेस्क्यू करेंगे।विक्टिम हुड इस देश पर थोपी गई एक बहुत बड़ी वामपंथी बीमारी है जो समाजवाद के रास्ते लोगों के दिमाग में जम चुकी है।दरअसल, थुलथुल वर्ग को अपने वोटर होने का भ्रम है। वोटर की गर्ज राज नीतिक दल करते हैं, संघ को इससे कोई मतलब नहीं। संघ अपने स्वयं सेवकों की राय अवश्य लेता है, समाज का मन्तव्य भी समझता है लेकिन "वोटर-मान सिकता" को फिल्टर करके भी देखना जानता है। संघ ने पूर्वोत्तर में उल्फा द्वारा अपहृत अपने 04 प्रचारकों तक की सौदेबाजी नहीं की और उन्हें मरते हुए देखा है, जबकि उस समय 2002 में आडवाणी जी गृहमंत्री थे।निर्णय लेने के स्तर पर संघ बहुत निर्मोही है।श्रीमोहनराव भागवत के इस भाषण को आप श्री कृष्ण के दूतकर्म या अंगद के उस अंतिम भाषण की तरह समझ सकते हैं।सम्भा वित टकराव रोकने की दिशा में एक प्रयत्न है।
"घाव बहुत गहरे हैं और यह इतना जल्दी भरे नहीं जा सकते।"अर्थात हिन्दू की सामर्थ्य बढ़ने के साथ ही टकराव तो होगा।"अन्यथा नुकसान बहुत भारी होगा!" यह बात उन्होंने दो बार कही।यह भारी नुकसान यथा संभव टाला जाना चाहिए।यह नुकसान, उसे तो बिल्कुल नहीं होगा जो आत्मरक्षा के प्रति सजग है।वास्त विकता यह है कि # भारी_नुकसान उसी थुलथुल वर्ग को होने वाला है जो "कोई तमाशा" tv पर live देखने की प्रतीक्षा में है।
यह भारी नुकसान, उस सेक्यूलर वर्ग को होने वाला है जो आज भी सर्वाधिक उनके संपर्क में है।यह भारी नुकसान उन्हें भी होगा जो आत्मरक्षा के संवैधानिक अधिकार के रहते हुए भी सरकार के भरोसे हैं या जिन्हें लगता है सरकार नहीं तो आरएसएस ही उन्हें बचा लेगा लेकिन स्वयं हर समय रायता ही फैलाते हैं।यह नुकसान उस सुविधाभोगी और विलासी वर्ग को भी होगा जो सीढियां चढ़ने से भी हांफ जाते हैं।
साथ ही,भारी नुकसान मुस्लिम समाज को भी होगा क्योंकि जब स्थितियां नियंत्रण से बाहर हो जाएंगी तो सबका नुकसान होगा।
(और संघ तो नुकसान सह ही रहा है।)उन्होंने एक मार्ग बताया है, भारत की परंपरा रही है, बिना रक्तपात के बड़े बड़े परिवर्तन करने की।
उन्होंने हमारी ओर से उन्हें आश्वस्त किया है कि एक तरीका यह भी है।उन्होंने मुस्लिम समाज को कहा कि उनकी पहचान पर कोई संकट नहीं है, हो सकता है आपको गलत भर माया गया हो!संघ की हिन्दू की परिभाषा इतनी ही है कि वह हर व्यक्ति हिन्दुस्तान में रहने वाला इस देश को मातृभूमि, पितृभूमि और पुण्यभूमि माने।अर्थात भारत को अपनी माँ माने (चूंकि DNA एक है) इस देश के महापुरुषों को अपना पूर्वज माने और इस देश के सुख दुख को अपना सुख दुख माने। वर्तमान में मुसलमानों को इतना मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, यही भाव था।संघ को पूजा पद्धति से वास्तव में कोई मतलब नहीं है क्योंकि आर्य समाजी और मूर्ति पूजक घोर विरोधी है, जब वे मिल जुल कर रह सकते हैं तो मुस्लिम क्यों नहीं रह सकते?उन्होंने भारत को सगुण-निर्गुण सामरस्य से भी समझने का आग्रह किया है।
वे चेतावनी भी देते हैं कि एकत्व और अपनत्व का मार्ग राजनीति से कभी नहीं आएगा। उसे तो दोनों पक्षों को मिल बैठकर ही हलनिकालना होगा।यदि मार्ग विद्यमान है तो बताना ही चाहिए और उन्होंने यही किया।
मुझे हँसी आती है सुन कर कि थुलथुल वर्ग कह रहा है कि "भागवत जी, आप पीछे हटिये, हम तो लड़ेंगे।"थुलथुल, कश्मीर में कितना लड़े थे,हमें याद है।फिर भी अच्छा है, कोई तो है जो आगे आ रहे हैं, भागवत जी का भार हल्का करने, चलो अच्छा है।

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