स्तंभ - 191/2023 संघ की रीति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मात्र केवल एक विचार नहीं, केवल एक संस्था नहीं, वह जीवन जीने की एक पद्धति है। जैसे व्यक्तिगत जीवन, वैसे ही सामाजिक जीवन भी। यह जीवन पद्धति अर्थात् संघ की रीति । जैसे किसी परिवार की रीति बनती है, वैसी ही संघ की बनी है। वह रीति पुस्तकें लिखकर या अनेक भाषण देकर नहीं बनी है। यह उदाहरणों से बनी है। इस रीति के कुछ बिन्दु- १. संघ में हम सब मित्र रहते हैं यानी बराबरी के रहते हैं। संघ में अधिकारी भी रहते हैं, किन्तु वह व्यवस्था का एक भाग है, केवल योग्यता का नहीं। अधिकारी में योग्यता रहना आवश्यक है। लेकिन क्या एक ही में योग्यता रहती है ? संघ ऐसा नहीं मानता। इसलिए सब एक दूसरे के मित्र और सहयोगी हैं। संघ में उच्च-नीच भाव नहीं है। २. सब बराबरी के होने से संघ में स्पर्धा को स्थान नहीं है।स्पर्धा नहीं, तो ईर्ष्या और मत्सर भी नहीं। सबके सम्बन्ध स्नेह भावना के रहते हैं। उसी तरह स्नेह और प्रेम का परस्पर व्यवहार रहता है। ३. आज्ञापालन व अनुशासन यह संघ की विशेष रीति है; लेकिन इसलिए दण्डशक्ति की व्यवस्था नहीं है। संघ शाखा के कार्यक्रमों द्वारा निर्माण होने...
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