Blog #23#
अकल के पीछे लट्ठ लेकर मत दौड़िए...
मेडिकल शिक्षा में 27% आरक्षण की घोषणा के साथ ही कुछ लोगों का रक्त उबलने लगा है, मूंछे ऐंठ गयी हैं और जातीय फतवे जारी किए जाने लगे हैं। ऐसा करते समय आर्थिक कमजोर सवर्णों के लिए 10% आरक्षण की घोषणा को कूड़े की टोकरी में फेंक दिया गया है।
किसी भी प्रकार की शिक्षा में आरक्षण नहीं किया जाना एक आदर्श स्थिति है। लेकिन पिछले 74 वर्षों के दौरान उस आदर्श स्थिति के लिए अनुकूल सामाजिक स्थितियों का निर्माण क्या देश में हुआ.? इस सवाल पर चर्चा बाद में। पहले यह चर्चा आवश्यक है कि जिनका रक्त उबल रहा है, जिनकी मूंछे ऐंठी जा रही हैं। जो जातीय फतवे जारी कर रहे हैं। उनसे क्या छीन लिया है कल हुई घोषणा ने.?
पहले कुछ तथ्य जान लीजिए...
ज्ञात रहे कि 2014 तक देश में कुल 54275 मेडिकल की सीटें थीं। इनमें 6 वर्षों में 30374 सीटें की वृद्धि की गई और अब यह संख्या 84649 हो चुकी है। इन सीटों में से 27% (22855) सीटें OBC के लिए आरक्षित की गई हैं। इसमें SC/ST के लिए आरक्षित 22.5% (19046) सीटें जोड़ लीजिए तो कुल आरक्षित सीटों की संख्या हो जाती है 41901. अतः शेष बची अनारक्षित सीटों की संख्या 42747हुई। अब यह भी जानिए कि 2014 तक अनारक्षित सीटों की संख्या 42063 थी। यानि आज की तुलना में 684 कम सीटें तब अनारक्षित थीं।
प्रधानमंत्री मोदी को अगर वोटबैंक की राजनीति के तहत ही यह निर्णय लेना होता तो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कम से कम 5 ऐसे अवसर थे जब वो निर्णय ले सकते थे। लेकिन उन्होंने जबतक यह व्यवस्था नहीं कर ली कि किसी से कुछ छीनकर किसी को ना देना पड़े तब तक उन्होंने यह घोषणा नहीं की। अतः धन्यवाद दीजिए प्रधानमंत्री को। अतीत में विश्वनाथ प्रताप सिंह को ऐसा अनर्थकारी फैसला करते हुए और देश को उसके दुष्परिणाम भोगते हुए भी हम देख चुके हैं। क्योंकि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सरकार बनने के कुछ महीनों बाद ही, बिना कोई कार्य किए, बिना कोई योजना या कोई कार्यक्रम बनाए ही 27% आरक्षण की घोषणा कर दी थी। अनारक्षित वर्ग को यह लगा था कि हमारा हिस्सा छीनकर दे दिया गया। परिणामस्वरूप देश भयंकर जातीय हिंसा की आग में झुलसा था। उस आग का सबसे तगड़ा और घातक राजनीतिक लाभ कट्टर इस्लामी शक्तियों ने उठाया था। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा नहीं किया। उपरोक्त तथ्यों से यह बिल्कुल स्पष्ट है।
अब अंत में एक सवाल उन लोगों से जो जातीय फतवे जारी कर रहे हैं। जिनका रक्त उबला जा रहा है। मूंछे ऐंठी जा रही हैं। वह यह बताएं कि जिनको यह 27% आरक्षण मिला है क्या वह भारतीय नहीं हैं, हिन्दू नहीं हैं.? क्या उनके भारतीय या हिन्दू होने की उपयोगिता उनके वोट देने तक ही सीमित है.? स्वतन्त्रता का सारा उपयोग और आनंद लेने का ठेका केवल कुछ लोगों तक ही क्यों सीमित रहे.? रही बात योग्यता क्षमता की तो अपनी गलतफहमी दूर कर लीजिए। क्योंकि 135 करोड़ की जनसंख्या में 50% से जनसंख्या वाले OBC वर्ग में प्रत्येक वर्ष मात्र 22 हजार नौजवान भी डॉक्टर बनने की योग्यता क्षमता नहीं रखते होंगे, ऐसी मूर्खतापूर्ण सोच का शिकार मैं नहीं बन सकता। OBC वर्ग का ही वर्तमान प्रधानमंत्री भी इस मिथक की धज्जियां धूमधाम से उड़ा रहा है। स्वयं अपने हृदय से ही पूछिए कि उनसे श्रेष्ठ प्रधानमंत्री कौन हुआ है देश में.?
बिल्कुल ताजा और बहुत कड़वी कसौटी बता रहा हूं। पिछले डेढ़ वर्षों के दौरान कोरोना संक्रमितों को पूरे देश में बेरहमी से लूटने खसोटने वाले कितने नर्सिंग होम और निजी अस्पताल आरक्षित वर्गों के डॉक्टरों के थे.? पता करिएगा तो चौंक जाइयेगा। उनकी योग्यता को चाटूं या ओढूं बिछाऊं.?
संयम और समझदारी का परिचय दीजिए। अकल के पीछे लट्ठ लेकर दौड़ने की आवश्यकता नहीं है।
जय जय भारत ----- 🙏
Comments
Post a Comment